स्वास्थ्य :सेहत पर न पड़े सर्दी का प्रकोप
इन दिनों ठंड का मौसम है। आमतौर पर सेहत के लिए अच्छा माना जाने मौजूदा मौसम असावधानियां बाये पर कई रोगों का कारण भी बन सकता। है, लेकिन कुछ समताएं बरतने पर इस मीर में होने वाली स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से काफी हद तक बचाव किया जा सकता है। अगर दुर्भाग्यवश कुछ रोगों से हो भी गए, तो उसका इलाज मौजूद है, लेकिन याद रखें इलाज से बेहतर बचाव है। प्रोस्टेट ग्रंथि का सामान्य आकार से पढ़ना या बिनाइन प्रोस्टेट हाइपरप्लेसिया (बीपीएस) के मामले अन्य ऋतुओं की तुलना में सर्दियों में कुछ ज्यादा यह जाते हैं। इसका कारण यह है कि सर्दी का मौसम सिम्पैटिकन को उत्तेजित करता है। यह स्थिति प्रोस्टेट की मांसपेशियों में संकुचन को बढ़ा सकती है। इस कारण सर्दियों में बीपीएच की समस्या से संबंधित कुछ ज्यादा ही मामले सामने आते हैं।
लक्षण -पतली भार में पेशाब होना :-पेशाब करने के लिए अधिक जोर लगाना और बार-बार पेशाब करता पेशाय के प्रवाह में वाला पेशाब करने के बाद भी ऐसा महसूस होना कि पूरा पेशाब नहीं निकला है। पेशाब को रोके रखने में असमर्थता पेशाब में जलन और पेशाब के दौरान रक्त निकालना। यदि किसी व्यक्ति में उपर्युक्त लक्षणों में से दो से अधिक लक्ष मौजूद हैं, तो उसे शीघ्र ही डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए जांचे डिजिटल रेक्टल ए-जामिनेशन प्रोस्टेट स्पेशिफिक एंटीजन (पीएसए) रक्त परीक्षण, गुदा का अल्ट्रासाउंड, पेशाब के प्रवाह की जांच और सिस्टोस्कोपी जांचों से इस रोग का पता चलता है।
उपचार - प्रोस्टेट का उपचार दवाओं या सर्जरी के द्वारा किया जा सकता है। हालांकि काफी रोगियों पर दवा काम नहीं कर सकती है। इसलिए सर्जरी अधिक बेहतर और कारगर प्रक्रिया साबित होती है।
टीआरपी (ट्रांस यूरेशल रिसेक्शन ऑफ प्रोस्टेट) आज भी यह सर्जरी सबसे अधिक स्वीकार्य है। यह सस्ती और आसानी से उपलब्ध सर्जिकल प्रक्रिया १. लेकिन इस सर्जरी के बाद रोगी को कुछ असहजताएं भी बर्दाश्त करनी पड सकती है। जैसे रोगी को लंबे समय तक अस्पताल में रहना पड़ता है, कैथेराइजेशन का समय लंबा होता है, रिकवरी में अधिक समय लगता है और उसे रक्तस्राव और 'टीआरपी सिंड्रोम' नामक समस्या का सामना करना पड़ सकता है।
नवीनतम उपचार- एचओएलईपी (होलमियम लेअर इनुक्लीएशन ऑफ प्रोस्टेट): यह बढ़ी हुई प्रॉस्टेट ग्रंथि के इलाज की नवीनतम प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में एक होलमियम लेजर मशीन से जुड़े 550 माइक्रॉन लेजर फाइबर के इस्तेमाल से प्रोस्टेट ग्रंथि के बढे हुए 'लोन्स' या भाग को पूरी तरह से बाहर निकाला जाता है। बाहर निकाली हुई ग्रंथि को उसके बाद मूत्राशय (यूरीनरी ब्लैडर) में डाल दिया जाता है। इसके बाद एक मॉसीलेटर (एक मशीन) को दूरबीन के माध्यम से डाला जाता है, जो ग्रंथि को खींच लेता है। इस पूरी प्रक्रिया में 45 से 90 मिनट का समय लगता है, जो ग्रंथि के आकार पर निर्भर करती है।। पूरी प्रक्रिया में व्यावहारिक रूप से रक्त की कोई हानि नहीं होती है और रोगी 28 से 36 घंटे के अंदर घर वापस चला जाता है।
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