आयुर्वेद में 'त्रिदोष सिद्धान्त' की विस्तृत व्याख्या हैं, वात, पित्त, कफ-दोषों के शरीर में बढ़ जाने या प्रकुपित होने पर उनको शांत करने के उपायों का विशद वर्णन हैं। आहार के प्रत्येक द्रव्य के गुण-दोष का सूक्ष्म विश्लेषण हैं, ऋतुचर्या दिनचर्या, आदि के माध्यम में स्वास्थ्य-रक्षक उपायों का सुन्दर विवेचन हैं तथा रोगों से बचने व रोगों की चिरस्थायी चिकित्सा के लिए पथ्य-अपथ्य पालन के लिए उचित मार्ग दर्शन हैं। आयुर्वेद में परहेज-पालन के महत्व को आजकल आधुनिक डॉक्टर भी समझने लग गए हैं और आवश्यक परहेज-पालन पर जोर देने लग गए हैं।
वात-पित्त-कफ रोग लक्षण
पित्त रोग लक्षण
- पेट फूलना दर्द दस्त मरोड़ गैस, खट्टी डकारें, ऐसीडीटी, अल्सर, पेशाब जलन, रूक रूक कर बूंद-बूंद बार बार पेशाब, पथरी, शीघ्रपतन, स्वप्नदोष, लार जैसी घात घात गिरना, शुक्राणु की कमी, बांझपन, खून जाना, ल्यूकोरिया, गर्भाशय ओवरी में छाले, अण्डकोश बढ़ना, एलर्जी खुजली शरीर में दाने शीत निकलना कैसा भी सिर दर्द मधुमेह से उत्पन्न शीघ्रपतन कमजोरी, इंसुलिन की कमी, पीलिया, खून की कमी बवासीर, सफेद दाग, महावारी कम ज्यादा आदि।
वात रोग लक्षण
- अस्सी प्रकार के वात, सात प्रकार के बुखार, घुटना कमर जोड़ो में दर्द संधिवात सवाईकल स्पांडिलाइटडिस, लकवा, गठिया, हाथ पैर शरीर कांपना, पूरे शरीर में सूजन कही भी दबाने से
गड्ढा हो जाना, लिंग दोष, नामर्दी, इन्द्री में लूजपन, नसों में टेढ़ापन, छोटापन, उत्तेजना की कमी, मंदबुद्धि वीर्य की कमी, बुढ़ापे की कमजोरी, मिर्गी चक्कर, एकांत में रहना आदि।
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कफ रोग लक्षण
बार-बार सर्दी, खांसी, छीकें आना, एलर्जी, ईयोसिनोफिलिया, नजला, टी.बी., सीने में दर्द, घबराहट, मृत्यु भय, हार्ट अटैक के लक्षण, स्वास फूलना, गले में दर्द गांठ, सूजन, टांन्सिल, कैंसर के लक्षण, थायराइड़, ब्लड प्रेशर, बिस्तर में पेशाब करना, शरीर मुंह से बदबू, लीवर किड़नी, का दर्द सूजन, सेक्स इच्छा कमी, चेहरे का कालापन, मोटापा, जांघों का आपस में जुड़ना, गुप्तांग में खुजली, घाव, सुजाक, कान बहना, शरीर फूल जाना, गर्भ नली का चोक होना, कमजोर अण्डाणु आदि ।
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